पाठ-3 क्या निराश हुआ जाए

लेखक-हजारीप्रसाद द्विवेदी 

  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म बलिया उत्तर प्रदेश जिले के 'दूबे का छपरा 'नामक गांव में हुआ था पारिवारिक परंपरा अनुसार संस्कृत का अध्ययन शुरू करके उन्होंने हिंदू काशी विश्वविद्यालय से ज्योतिसाचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की गुरुदेव रवींद्रनाथ के आश्रम में 1940 से 1950 तक हिंदी भवन के निर्देशक रहे। तत्पश्चात काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी एवं पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में अध्यक्ष पद पर कार्य किया भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किया।

    हिंदी साहित्य जगत में द्विवेदी जी एक निबंध कार, उपन्यासकर, समालोचक तथा शोधकर्ता इतिहासकार के रूप में प्रचलित है' 'अशोक के फूल'' विचार प्रवाह' ' 'कुटज ' 'कल्पलता' निबंध संग्रह ;'बाणभट्ट की आत्मकथा ' ,'पुनर्नवा', 'चारुचंद्र लेख ','अनामदास का पोथा', 'उपन्यास तथा 'कबीर' 'सूरदास',' हिंदी साहित्य का आदिकाल',' ' साहित्य सहचर', ' हिंदी साहित्य: उदभव और विकास' आदि आलोचना तथा इतिहास ग्रंथ है।

    प्रस्तुत निबंध में द्विवेदी जी ने यह समझाया है कि तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त अनाचार केवल बाहरी स्तर पर है : वास्तव में आज भी लोगों में मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था कायम है ।अपने जीवन में घटित कुछ घटनाओं के द्वारा बताया है कि हमें निराश नहीं होना चाहिए अपितु हमें जीवन के प्रति आस्थावान बने रहना चाहिए।

शब्दार्थ : 

तस्करी- चोरी

मनीषी- पंडित, मेघावी

माहौल-परिस्थिति

निरीह- निराधार

फरेब-धोखा

भीरु- कायर

आलोड़न-मथना

निकृष्ट-अधम

गुमराह-भुला हुआ

पैमाना-मापदंड

दकियानूसी-पुराने ख्याल वाला

त्रुटि-कमी

कातर-लाचार

मुहावरे :

-मन बैठ जाना-उदास होना

-फलना -फूलना-समृद्ध होना

-पर्दाफाश करना-भेद खोलना

-ज्योति बुझना-मरना

-कातर ढंग से देखना-भय भीत होकर देखना

शब्द -समूह के लिए एक शब्द दीजिए

-धर्म से डरनेवाला-धर्मभीरु

-मिलन की भूमि-मिलनभूमि

सुख देनेवाला-सुखद

पर्यायवाची शब्द : 

तशकर-चोर

फरेब-धोखा

कायर-भीरु

निरीह-निराधार

निकृष्ट-अधम

माहौल-परिस्थित

विरोधी शब्द :

ईमानदार-बेइमान

भ्र्ष्टाचार-सदाचार

आंतरिक -बाह्य

सबल-निर्बल

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक एक वाक्य में लिखिए 

1) आज समाचार पत्र में कौन-कौन से समाचार भरे रहते हैं?

ज) आज समाचार पत्रों में चोरी ,डकैती, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं ।

2) देश का वातावरण आज कैसा बन गया है?

ज) देश का वातावरण आज ऐसा बन गया है कि लगता है देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं बचा है।

3) भारतवर्ष ने किस को अधिक महत्व नहीं दिया है?

ज)भारत वर्ष ने भौतिक वस्तु ओ के संग्रह को अधिक मह्त्व नही दिया है।

4) मनुष्य के मन में कौन-कौन से विकार है?

ज) मनुष्य के मन में काम, क्रोध ,लोभ ,मोह आदि विकार हैं।

5) भारतवर्ष किसको  धर्म के रूप में देखता आ रहा  है?

ज) भारतवर्ष कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है  ।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्य में लिखिए

1) लेखक क्या देख कर हताश हो जाना उचित नहीं मानते?

ज) लेखक कहते हैं कि आजकल इमानदारी और परिश्रम के बदले झूठ का बाजार गर्म है अपनी दिखाई देने वाली इस मनुष्य निर्मित स्थिति से हताश हो जाना उचित नहीं है।

2) लोगों में महान मूल्यों के बारे में आस्था क्यों हिल गई है?

ज) आजकल इमानदारी और परिश्रम करके जीविका कमाने वाले श्रमजीवी पीस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल फूल रहे हैं इसलिए लोगों में महान मुल्यो बारे में आस्था हिल गई है।

3) देश के दरिद्र जनो  की हीन अवस्था  दूर करने के लिए क्या किया गया है?

ज) देश के दरिद्जनो की हीन अवस्था दूर करने के लिए शासन ने अनेक कायदे -कानून बनाए हैं। इनका यही लक्ष्य है कि कृषि उद्योग ,वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में लोगों की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारू बनाया जाए।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पांच या छह वाक्य में लिखिए।

1) लेखक का मन क्यों बैठ जाता है?

ज)     प्रस्तुत निबंध में लेखक ने हमें निराश नहीं होने की बात कही है।

     हमारे देश के अखबार चोरी ,डकैती ,तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचारों से भरे रहते हैं ।राजनीतिक दल एक -दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे देश में कोई ईमानदार ही नहीं रह गया ।लोग हर व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखते हैं ।जो जितने उचे पद परहै ,उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं सब अपने अपने स्वार्थों में लिप्त है ।देश के हित की बातें बहुत कम हो रही है देश और समाज की ऐसी दशा देखकर लेखक का मन बैठ जाता है।

2) भारतवर्ष को 'महामानव समुद्र 'क्यों कहा गया है?

ज) भारतवर्ष एक प्राचीन और विशाल देश है सदियों से यहां अनेक जातियां आई और यही

बस गई ।विदेश से अनेक धर्मावलंबी यहां आए और यहीं के होकर रह गए इस प्रकार भारत आर्य और द्रविड़ हिंदू और मुसलमान यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन भूमि है। भारतीय सभ्यता में विदेश से आई सभ्यताओं का भी प्रभाव है यहां की संस्कृति में विदेशी संस्कृति या धूल -मिल गई है ।भारतीय समाज में देशी-विदेशी तरह तरह के लोग आए और समा गए हैं। इसलिए भारतवर्ष को महामानव समुद्र कहां गया है।

3) धर्मा को भारतवर्ष में श्रेष्ठ क्यों माना गया है?

ज) शासन और समाज की सुख सुविधा के लिए सरकार तरह-तरह के कानून बनाती है। लेकिन भारत वासियों की दृष्टि में धर्म कानून से बड़ा है ।धर्म के कारण ही अब भी सेवा सच्चाई ईमानदारी और आध्यात्मिकता आदि बने हुए हैं ।धर्म के भय से मनुष्य झूठ और चोरी को गलत समझता है ।धर्मबुद्धि के कारण ही लोग दूसरों को पीड़ा पहुंचाना पाप मानते हैं ।धर्म बुद्धि ही लोभ,मोह, काम ,क्रोध आदि विकारों पर संयम रख सकती है। और निकृष्ट आचरण करने से रोकती है। इसलिए धर्म को भारतवर्ष में श्रेष्ठ माना गया है।

4) कंडक्टर ने अपनी ईमानदारी कैसे बताई?

ज) एक बार लेखक सपरिवार बस यात्रा कर रहे थे गंतव्य स्थान से लगभग पांच मील  पहले एक सुनसान स्थान पर बस खराब हो गई ।कंडक्टर समझ गया कि यह बस अब आगे नहीं जा सकती ।वह एक साइकिल लेकर चला गया ।इस समय रात के दस बजे थे। यात्री बस ड्राइवर पर अपना क्रोध उतारने लगे। लेखक के बच्चे भोजन और पानी के लिए व्याकुल थे ।यात्री ड्राइवर को मारने के लिए तैयार हो गए ।ठीक उसी समय बस कंडक्टर एक खाली बस लेकर आया यात्री उसमें सवार हो गए। कंडक्टर लेखक के बच्चों के लिए पानी और दूध भी लाया था।

     इस तरह बस कंडक्टर ने अपनी ईमानदारी और सज्जनता बताई।