काव्य-४ कर्ण का जीवन-दर्शन

कवि-रामधारीसिंह 'दिनकर'

 जन्म-इ.सन-1908:निधन:ई.सन 1974

 कवि परिचय-●●●● हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह 'दिनकर 'का जन्म बिहार के मुंगरे जिले के सिमरिया नामक गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर तथा उच्च शिक्षा पटना में प्राप्त की ।पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करके कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। दिनकर जी सीतामढ़ी में सब रजिस्ट्रार और मुजफ़रपुर कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे ।वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति और भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति के अध्यक्ष भी रहे थे।

      दिनकर जी की सबसे बड़ी विशेषता है -अपने देश और युग के प्रति जागरूकता। कवि ने तत्कालीन घटनाओं- विषमताओं का खुलकर चित्रण किया है। उनकी वाणी में शक्ति है, उनकी कविता में शोषित और पीड़ित वर्ग की व्यथा और उससे मुक्ति का संघर्ष है।

    ' उर्वशी', ' रश्मिरथी', ' रेणुका ',' रसवंती',' कुरुक्षेत्र 'उनकी काव्य कृतियाँ है  'उर्वशी 'के लिए उन्हें सन 1972 का ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था ।'संस्कृति के चार अध्याय' उनका चिंतन ग्रंथ है ,जिसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।' अर्धनारीश्वर ','मिट्टी की और', आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं ।उनका कृतित्व गुणवत्ता और परिमाण दोनों दृष्टि से विपुल हैं।

   प्रस्तुत खंड काव्यांश में' रश्मिरथी'महारथी कर्ण के करुण किंतु भव्य जीवन की मीमांसा करने वाला खंडकाव्य है ।सारे अन्यायों को सहकर कर्ण  जन्मजात महानता पर पुरुषार्थजन्य महानता की विजय चाहता है  अंत में जब पांडव श्रेष्ठ के रूप में सब कुछ प्राप्त करने का प्रलोभन सामने आता है तब भी वह  अविचलित रहता है और जिसने आज तक साथ दिया उस मित्रों को किसी भी मोड़ पर छोड़ना नहीं चाहता ।कृष्ण,कर्ण को पांडवों के पक्ष में ले आने के लिए उससे मिलते हैं ,उस कथा प्रसंग से प्रस्तुत काव्यांश लिया गया है।

शब्दार्थ●●●●●

वैभव

धन, दौलत

विलास

सुखोपभोग

चाह

ईच्छा, अभिलाषा

परवाह

चिन्ता, व्यग्रता

निर्मल

पवित्र,शुद्ध

करतल

हथेली

निर्धन

धनरहित,कंगाल

विभव

धन,संपति

प्रभूत

अधिक

अत्यल्प

बहुत थोड़ा

हास

निंदा,उपहास

चाकचिक्य

चमक

कंचन

सुवर्ण,सोना

कनकाभ

स्वर्णिम आभावाले

शैल

पर्वत,पहाड़,चट्टान

दरार

दरज,चीर

किरीट

मुकुट

तेज

प्रभाव,कांति

वारि

जल,पानी

प्रपात

पहाड़ या चट्टान का खड़ा किनारा

अयन

गति,चाल

विष

गरल,जहर

भुजंग

शर्प

विपद

आपत्ति,संकट

घोर

भयंकर

पाटना

ढेर लगादेना

अहिपाश

साप का बंधन

संक्षेप में उतर दीजिए:●●●●●●●●●

1) वैभव से क्या प्राप्त होता है?
ज) वैभवसे मनुष्य को ढेर सारी चिंताएं और थोड़ी -सी हँसी- खुशी प्राप्त होती है इसके अतिरिक्त उसे चमक-दमक दिखाने का अवसर और क्षणिक भोग -विलास प्राप्त होता है।

2) गरुड़ कहा रहता है?
ज) गरुण पहाड़ों में निवास करता है ।चट्टानों की फ़टी दरारें ही उसका घर होती है।

3) धन-संपत्ति किस लिए हैं?
ज) धन-संपत्ति परोपकार के लिए है ।

3) फ़णिबंध से कौन छुड़ाते हैं?
ज)फ़णीबंध से गरुड़ जैसे साहसी और वीर पुरुष ही छुड़ाते हैं।

4) समृद्धि -सुख के अधीन मानव का क्या होता है?
ज) समृद्धि- सुख के अधीन मानव का तेज- प्रभाव दिन- प्रतिदिन क्षीण होता जाता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पांच या छ: वाक्य में लिखिए●●●●●●

1) कर्ण को राज्य की इच्छा क्यों नहीं है?
ज) कर्ण त्यागी ओर दानी पुरुष है ।वैभव-विलास में उसकी रुचि नहीं है ।राज्य मिलने पर सिर पर अनेक चिंताए सवार हो जाती है ।बस थोड़े समय के लिए हँसी-खुशी चमक-दमक और भोग -विलास की सामग्री उपलब्ध हो जाती है। इन क्षणभंगुर वस्तुओं को तुच्छ समझता है।

इसलिए कर्ण को राज्य की इच्छा नहीं है।

2) दानी पुरुषों का स्वभाव कैसा होता है?
ज) दानी पुरुष धन- दौलत को संग्रह करने की वस्तु नहीं मानते। वे अपना धन दूसरों को बांटने में ही रुचि रखते हैं । वे अपने बहुमूल्य वस्तुए दूसरों को देने में संकोच नहीं करते वे किसी से कुछ लेते नहीं । इस प्रकार दानी पुरुषों का स्वभाव दयालु और उदार होता है।

विकल्पों की सही जोड़ मिलाइए:●●●●●●●●●

1)कर्ण के आदर्श वाले मनुष्य.......
उतर-कंचन का भार नही ढोते।

2)महलो के शानदार शिखरों में......
उतर-कबूतर रहते है।

पर्यायवाची शब्द●●●●●●

विलास

सुखोपभोग

करतल

हथेली

प्रचुर

प्रभूत

दरज

दरार

वारि

पानी


विरोधी शब्द●●●●●

निर्मल

मलीन

निर्धन

धनवान

प्रभूत

कम

कोमल

कठोर

अमृत

विष


शब्दसमूह के लिए एक सब्द ●●●●

1)जो बिलकुल मलिन नही है-निर्मल

2)राजा के लिए बनाया हुआ महल-राजमहल

3)पक्षियो में राजा-पक्षिराज

4)मंदिर या पहाड़ का सब से ऊंचा भाग-शिखर